मेरा ख़ुशियों से साबका पूछा
मेरा ख़ुशियों से साबका पूछा रात से धूप का पता पूछा अश्क़ तीमारदार थे मेरे दर्द ने हाल ज़ख़्म का पूछा ज़िन्दगी की न फ़िक्र की, उसने शुक्र है, बाइसे क़ज़ा, पूछा ख़ुद से मुज़रिम ने जागने पे ज़मीर, क्यों हुई उससे ये ख़ता पूछा दौर क्या है कि मुझसे वाइज़ ने किसको कहता हूँ मैं ख़ुदा पूछा दीद पाकर सवाल भूल गए पूछना क्या था और क्या पूछा आये तो थे हमारी पुरसिश में कैसे पढ़ते हैं मर्सिया पूछा मुस्तहक़ हूँ ये मानकर मुझसे ख़ुद ही मंज़िल ने रास्ता पूछा