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Showing posts from December, 2017

मुमकिन है तुमको उसकी हक़ीक़त पता न हो

मुमकिन है तुमको उसकी हक़ीक़त पता न हो मुफ़लिस जो दिख रहा है कहीं वो ख़ुदा न हो मेरी  किताबे  ज़ीस्त  के  हैं  सब वरक़ उदास शायद  तुम्हारा  लम्स  उन्हें  भी  मिला  न  हो ग़म  औ'  खुशी  के  बीच  मुअम्मा है ज़िन्दगी मुमकिन  है  फैसला  अभी  उसने किया न हो तू   है    ख़ुदाशनास    तो   संज़ीदगी    दिखा यूँ    ख़ुदनुमाई   तेरी   ख़ुदा   देखता   न    हो इल्ज़ामे   नारसाई   से   पहले   ये   सोच   ले तेरा   मुतालबा    ही    कहीं    नारवा   न  हो कैसे    दिखेगा   चाँद   मुकम्मल   तुझे   बता जब  तक  सहीह  देखने  का  जाविया  न हो इंसाफ   क्या   इसी   को    कहेगी   अदालतें जिसने  किया  हो  जुर्म  उसी  को सज़ा न हो उसकी  उदासियों  का  पता  ऐसे  चल  गया यूँ  हँस  रहा  था  जैसे  कहीं कुछ हुआ न हो 221  2121  1221  212

बात उठी जब उसके खारे पानी की

बात उठी जब उसके खारे पानी की सागर  ने अपनी फ़ित्रत तूफ़ानी की आख़िरकार ख़ुशी वो ख़ुद चलकर आई इक अरसे तक जिसने आनाकानी की कुदरत की हर चाल हमारे हक़ में थी हार   गए   जब  हमने  बेईमानी  की शरमाई तो बादल को ही ओढ़ लिया सूरत उसमे जब उभरी उरियानी  की मिलकर ख़ुश हो ये तो मैंने मान लिया वज़ह  बताओ आँखों  में तुगियानी की जाते   जाते   उसने  मुड़कर  देखा था हमने  वो  सूरत  रख  ली  सैलानी की इनके आज सवाल निरुत्तर  करते  हैं जै  हो  नन्हें  बच्चों  की  नादानी   की अनुचित है बच्चों को संजीदा करना हद क़ाइम है क्या लुत्फ़े लासानी की दौरे  नौ  के  बच्चों  की  है  सोच  नई भाये  ख़ाक  कहानी  राजा  रानी  की

मुझे उससे कोई शिकवा नहीं है

मुझे  उससे  कोई  शिकवा  नहीं है तुम्हारे बिन जो ख़ुश रहता नहीं है तुम्हारा अक्स अगर तुमसा नहीं है तो   आईना   ही   आईना   नहीं  है थका   तो   है   मगर  हारा  नहीं है हमारा  दिल   अभी   बैठा  नहीं  है गिले शिकवे भी थे बाइस खुशी के मगर  अब  हाल  पहले सा नहीं है मुहब्बत  ताड़  लेती  है  ये  दुनिया मुनादी   तो   कोई  करता  नहीं  है तुझे भी जीत हासिल हो तो जाती तू  ही  किरदार  में  रहता  नहीं  है हमारे हो नहीं तो खुल के कह दो बिछड़ कर अब कोई मरता नहीं है उदासी मुनअकिस है रुख़ पे उसके छुपाने  से  भी  ग़म  छुपता  नहीं  है सहेगा    दर्द    के    पथराव   सारे मेरा दिल काँच का टुकड़ा नहीं है करे  आवारग़ी  क्यूँ  टूट  कर भी मेरा  दिल  दश्त  का पत्ता नहीं है हमारी  नब्ज़  को  छूकर  बताओ तुम्हारे दिल से तो रिश्ता नहीं है लगेगी जिस्म में अब आग कैसे तुम्हारा लम्स पहले सा नहीं है रुका है खुशबुओं का क़ाफ़िला यूँ चमन  से  हो  के तू गुजरा नहीं है लगें  मुझको  सभी  की  बद्दुआयें दुआ  ये  भी  कोई  देता  नहीं  है

गया है मरु में कौन आब के लिए

गया है मरु में कौन आब के लिए उलाहने  है  क्यों  सराब  के लिए चमन में कौन  ख़ार  के लिए गया गया है  जो भी वो  गुलाब के लिए जो  एक   दूसरे  के  थे  अदू  वही हुये  हैं  दोस्त  बस शराब के लिए बहुत  खुलूस   से   निभाई  दोस्ती- भी  टूटती  है  आबो  ताब के लिए नदी की मौज़ औ' रवानियाँ भी देख इसे  मिली  हैं   ये   शबाब   के लिए तुम्हारे अश्क आ गए हैं ख़ुद ब ख़ुद हमारी   आँख   में   जवाब  के  लिए न  मेरे  रुख़  पे  खोजिये  मुनाफ़रत न  है  न  थी  कभी  जनाब  के लिए हर   एक   ज़िंदगी   है   एक  मुद्दआ हर  एक  मौत  के  हिसाब  के  लिए उदासियाँ जो ओढ़कर खड़े हैं  आप बहुत   मुफ़ीद   है   हिजाब  के लिए 1212  1212  1212

कागज़ की कश्ती पर दाँव लगाते हो

कागज़ की कश्ती पर दाँव लगाते हो तुहमत  सारी  लहरों को दे  जाते हो हँसते  हो  तो  चेहरा  साथ  नहीं देता आख़िर क्यों अपने जज़्बात छुपाते हो आँखों  से  अल्फ़ाज़  टपकने  लगते  हैं जब  मजबूरन   ख़ामोशी  अपनाते  हो तुमको  दरिया  का  सानी  कैसे  कह दूँ तुम  तो  सागर  को  भी पास  बुलाते हो कैसी  भी  हो  आग  हमारे  बीच  मगर बुझ  जाती है  इतने  अश्क़ बहाते  हो एक  अकेला  सूरज  क्या  कर  पायेगा तुम भी नूरफ़िशां हो, बोलो,  आते  हो जान गए क्या तल्ख हक़ीक़त ख़्वाबों की जो  पलकें  बोझिल  हों  तो  घबराते  हो मेरी   फ़ित्रत   है   लंबी   रेखा   खींचूँ तुम नाहक़ ही  मुझसे  होड़ लगाते हो

जिन्हें पता है मनाज़िल को रास्ता करना

जिन्हें पता है मनाज़िल को रास्ता करना कहाँ  गये  वो  मुसाफ़िर ज़रा पता करना चिराग़ रोज तो जलते नहीं हैं खुशियों के मुनासिब आज नहीं आँधियों हवा करना हमें  तुम्हारी  अगर  दीद  रोज  हो  जाती तो हम बताते अमावस को ईद सा करना हमें मिला ही  नहीं आज  तक  मसीहा  वो सिखा दे जिस्म को जो रूह से वफ़ा करना हर  एक  बात  पे  तेवर दिखाने वाले सुन तेरे  ही  हक़  में नहीं यूँ  मुज़ाहरा  करना अभी  है  गर्म  न  छूना  तू  राख  को मेरी इसे  है  याद  तेरे  लम्स  से  वफ़ा  करना ख़राब हो गई  नीयत हमारे  दिल  की जो हमें बता  रहा  है  साथ  तेरे  क्या  करना जो झूठ मूठ शिकायत भी अब नहीं करता उसे  सिखाओ मुहब्बत को  मुद्दआ  करना