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Showing posts from January, 2018

तुम्हे आज़ाद करके दूँ ख़ुशी, उम्मीद मत रखना

तुम्हे आज़ाद करके दूँ ख़ुशी, उम्मीद मत रखना बहाना दूँ  तुझे  कोई  कभी,  उम्मीद मत रखना तसल्ली  दे  रहे हैं जो सुनाकर अपने अपने ग़म कभी  इन ग़मगुसारों से कोई उम्मीद मत रखना वज़ूद  अपना  बचा  पाते  नहीं  जो  टूटते  तारे करेंगे  ख़्वाहिशें  पूरी  वही,  उम्मीद  मत रखना जो कुदरत का घुटेगा दम कभी अह्ले-कुदूरत  से  ज़मी पर तब भी होगी ज़िन्दगी,उम्मीद मत रखना गुनाहों से तुम्हारे, रूह आजिज़ आएगी जिस दिन छुपा  पाएगी  वो  नाराज़गी,  उम्मीद  मत  रखना समुन्दर की तरह है मौज़जन ख़्वाबों का जो दरिया मिटायेगा   तुम्हारी   तिश्नगी   उम्मीद  मत  रखना तुम्हारे  लोग अदावत पर  कभी  होंगे जो  आमादा शनासाई   करेगी   ख़ुदकुशी   उम्मीद  मत  रखना

हम तुम्हें छोड़ के जन्नत भी न जाने वाले

हम  तुम्हें  छोड़  के  जन्नत भी न जाने वाले आबला   पा  के   लिए  फूल  बिछाने  वाले तेरी दुनिया मेरी दुनिया से अलग क्या होगी रस्मे  दुनिया  को हैं  हम  दोनों निभाने वाले जी  न  उट्ठूँ  मैं  कहीं  लम्स तुम्हारा पाकर मेरी   तस्वीर   को   सीने   से   लगाने  वाले जिस्म  पर  मेरे  उभरते हैं तेरी याद के साथ फिर   वही   ज़ख़्म   वही  दाग़  पुराने  वाले तू जो कह दे तो दुबारा वो ख़ता फिर कर दूँ जिसके  किस्से  नहीं  होते  हैं  सुनाने  वाले ऐसा मुम्किन ही नहीं तुझसे बिछड़कर जां दूँ बदगुमां  इतना  न  हो  छोड़  के  जाने  वाले हम किसी और  के हो जाएँ, नहीं हो सकता सब्र   थोड़ा   तो   करो  पास   बुलाने   वाले हमने   देखे   हैं  कई  लोग   इसी  दुनिया  में एक  ही   दिल   को  कई  ठौर  लगाने  वाले आख़िरी ज़िद है तुम्हारी तो चलो मान लिया सर   तुम्हारा   नहीं  शाने   से   हटाने   वाले राख   पूरी  न   बहा  पाए  हैं  अहबाब   मेरी लौटकर  घर   गए   सब   सोग  मनाने  वाले

ग़म देने में जो कंजूस रहा होगा

ग़म  देने  में  जो  कंजूस  रहा  होगा वो  इसका  सरमायादार  बना  होगा दाग़  उभर  आये   हैं   तेरे  चेहरे  पर आज किसीने तुमको चाँद कहा होगा मेरा हिलना डुलना भी नामुमकिन है उसने अपने दिल पर हाथ रखा होगा जाने   कैसे   इतने  लोग  हुए  घायल ज़द पर तो बस मेरा जिस्म रहा होगा अपने अपने ग़म आओ यकजा कर लें मिलजुल कर ही सह लें तो अच्छा होगा लड़की होगी  या लड़का ये तुम सोचो वो  बस  प्यारी  होगी  या  प्यारा होगा दे देकर दस्तक समझाया ख़ुद को ही रोते  रोते  वो  थक  कर  सोया  होगा कितने   तारे   टूटे   कितने   बाक़ी  हैं हर आशिक़ ने गिन कर बतलाया होगा घूम घाम कर  रुक  जाएगी  जब धरती उस पल अम्बर से इसका मिलना होगा Jan 8th 2018

इक राह के मुसाफ़िर हम भी हैं और तुम भी

इक राह  के  मुसाफ़िर  हम  भी हैं और तुम भी इक मुश्ते ख़ाक आख़िर हम भी हैं और तुम भी रखते  हैं  सोच  ओछी,  मज़हब  पे  दूसरे  के इस ज़ाविये से काफ़िर हम भी हैं और तुम भी अपनी अक़ीदतों का हम चाहते हैं प्रतिफल इस तर्ह एक ताजिर, हम भी हैं और तुम भी ज़हनों में अक्स कितने हम रोज हैं बनाते ख़ुद में निहाँ मुसव्विर हम भी हैं और तुम भी ढोते हैं ज़िन्दगी भर हम बारे जिस्म लेकिन दर अस्ल बस अनासिर हम भी हैं और तुम भी हमको जहां में आकर पहचान क्या मिली है सोचो तो इक मुहाजिर हम भी हैं और तुम भी नाराज़गी  है  हम  को,  तुम  को  शिकायतें  हैं, दर पर उसी के क्यूँ फिर, हम भी हैं और तुम भी 221  2122   221   2122