Posts

Showing posts from October, 2017

मेरा मंसब जनाब से कम है

मेरा मंसब जनाब से कम है रो'ब भी इस हिसाब से कम है मौत के बाद की ख़ुदा जाने ज़िन्दगी किस अज़ाब से कम है अश्क पी कर भी है ख़ुमारी सी क्या जो नश्शा शराब से कम है देखता है मगर हक़ारत से बेरूख़ी किस जवाब से कम है ख़्वाब में पेट भर के खा लेना क्या किसी इंक़लाब से कम है ग़मगुसारी में छोड़ दीं खुशियाँ ये भी क्या इज़्तिराब से कम है जान ले ले जो अश्क़े तनहाई क्या किसी ज़ह्रे आब से कम है हर वरक़ पर लिखे हैं अफ़साने ज़िंदगी किस किताब से कम है।

जो तू मिला तो बेसबात ज़िन्दगी ठहर गयी

जो तू मिला तो बेसबात ज़िन्दगी  ठहर  गयी खफ़ा हुआ जो तू हमारी ज़िंदगी बिखर गयी हमारे  हौसलों  से  मौत हार  मान  कर  गयी वो छू के लौट कर गयी तो ज़िंदगी सँवर गयी बड़ी अजीब सी कशिश है तेरी नफ़रतों में भी न तू ने क़ैद ही किया न  तो  रिहा ही कर गयी अमान पर न हो ख़मी किसी की भी निगाह में उड़ा  दिये  कबूतरों  को हम जिधर नज़र गयी फ़कीर को पता है अस्ल ज़िंदगी का हर पता अमीर को ख़बर नहीं कब और क्यूँ किधर गयी न  इब्तिदा  न  इंतिहा  में  मुब्तला  रहा मगर ये  काइनात  क्यूँ  मुझे  ही दागदार कर गयी हमें है रश्क साहिलों से, क्या नसीब उन्हें मिला कि चूम कर जिन्हें समन्दरों की हर लहर गयी हमें  वो  राह  ढूँढ़नी  है  जिस  पे राहबर न हों हयात  रहजनो  को  ही  बना  के राहबर गयी हर एक ज़हन में चराग़ जल उठे ख़ुशी के जब हवा  तुझे  जो  छू के आयी पास से गुज़र गयी 1212 1212 1212 1212

महरूम ख़ुद रहा जो सब में प्यार भर गया

जो ख़ुद न पा सका वो सब में प्यार भर गया इक  चारागर  इलाज़  के  बग़ैर  मर   गया अब और किस तरह बखान आपका करें जब देखते ही आपको, चेहरा निखर गया देखा जिसे उसी के दिल में हो गए मकीं यूँ आईने में अक्स आपका उतर गया थे साथ उसके जितने भी नजूम रात भर देकर  सहर  को मुँह दिखाई  में क़मर गया कैसे करे इलाज़ आख़िरश तेरा तबीब देखा तुझे तो चारागर का सब हुनर गया उसको अदब में फिर नहीं मिली कोई जगह अपने मयार से जो अह्ले फ़न उतर गया मौजूद तेरे आस पास ही है वो खुदा जिसकी तलाश में तू जाने कितने दर गया

दिल में दरिया के उतरकर हमसफ़र हो जायेगा

दिल में दरिया के उतरकर हमसफ़र हो जायेगा अब्र पिघला  तो समुन्दर  का जिगर हो जायेगा मुत्मइन हूँ एक दिन चूमेगी मंज़िल पाँव खुद रास्ता  ही  जब  हमारा  राहबर  हो  जायेगा प्यार वालिद का वलद समझेगा बस उस वक़्त जब ख़ुद  भी  वो  फ़ज़्ले  ख़ुदा  से  बारवर  हो  जायेगा है बरहना-पा मगर यह अज़्म देखो तिफ़्ल का दम पे जिसके एक दिन वो नामवर हो जायेगा फ़िक्र क्यूँ है जो खिजां में हो गया बेबर्गोबार फिर बहारों में  शजर तू बासमर हो जायेगा जज़्ब-ए-दिलगीर  की  शिद्दत  जो  ऐसी  ही  रही ख़ुद ब ख़ुद दुश्मन भी उसका मो'तबर हो जायेगा क्या मिलेगा ज़िन्दगी में बन के किस्मत का मुती'अ बंदए  तक़दीर  तू  बेबालोपर  हो  जायेगा ज़ह्र  ही  देना  हो  तो  देना  न  अपने  हाथ  से हो  भले  ज़ह्रे-हलाहिल,  बेअसर  हो  जायेगा

जहाँ मुंसिफ़ अदल से सरगिरां है

जहाँ मुंसिफ़ अदल से सरगिरां है वहाँ  इन्साफ़  का इमकां  कहाँ है परिंदों  ने  क़फ़स  से  की  बग़ावत अब उनकी ज़द में सारा आसमां है शजर कब तक बचेंगे दश्त में जब असर  उनपर  रुतों  का रायगाँ है नहीं  शिकवा  करेगा  टूटकर  भी मेरा  दिल  भी  मुझी  सा बेज़ुबां है तवक्को  थी  हमें  तो  रहमतों की तवज्जोह  आपकी  जाने  कहाँ है हमेशा  साथ  क्यूँ  रहता  नहीं  ये मेरा  साया  भी कितना बदगुमां है किसे  कोसूँ  किसे  गुस्सा दिखाऊँ नहीं  जब   और  कोई  हमइनाँ  है   

दिखला दे अक्से ज़ेहन भी वो आइना मिला

दिखला दे अक्से ज़ेहन भी वो आइना मिला खुद को ही  देखने  का  नया  ज़ाविया मिला राहे  बदी पे  चलने का सब को सिला मिला फिर भी  ख़ुदा से आदमी कम आश्ना मिला मंज़िल  मेरी  अलग थी अलग रास्ता मिला मुझको  सफ़र  में रहनुमा  भी  पारसा मिला रस्ता ही राहबर हो तो मंज़िल की फ़िक्र  क्यूँ था अज़्म तो बशर से ख़ुद आकर ख़ुदा मिला ख़्वाहिश बशर की चाल, चुनौती ख़ुदा की चाल शतरंज  सब  के  साथ  ख़ुदा  खेलता  मिला साये   में   मेरे   बैठ   गयी  यूँ  शदीद  धूप सहरा  में  जैसे  कोई  उसे  आसरा  मिला आँखों  को  मेरी  कैसी  अज़ब  रौशनी  मिली हर  आदमी  में  कोई  मुझे  दूसरा  मिला शख़्सीयत  अपनी  क्या  है  पता  ही नहीं मुझे किरदार  रोज़  रोज़  ही  मुझको  नया  मिला

मुहब्बत में ही तेरी दम नहीं है

मुहब्बत  में  ही तेरी दम नहीं है मेरी नीयत में कोई ख़म नहीं है मेरी ख़ुशियाँ  जो  मुझसे छीन  पाये जहां   में   ऐसा  कोई  ग़म  नहीं   है ख़ुशी से है कि है नाराज़गी से तू मेरे साथ है ये कम नहीं है तरन्नुम है हमारी बेड़ियों में किसी पायल की ये छम छम नहीं है क़यामत-ख़ेज़  इसके  तजरबे  हैं मगर दिल आज भी बरहम नहीं है तेरी आँखें हैं अनपढ़ क्योंकि इनमें मुहब्बत  पढ़  सकें  वो  दम नहीं है बदल जाती है हर शै वक़्त के साथ सचाई   है ये,  कोई भ्रम नहीं  है अगर मैं ताश भी खेलूँ तो मेरे मुक़द्दर  में  कोई  बेग़म नहीं है

मेरी तन्हाई पर कुछ तरस खाइये

मेरी तन्हाई पर कुछ तरस खाइये अब ख़यालों से मेरे चले जाइये रूह को दे के छाले अगर खुश हैं आप पा सकें तो इसी में सुकूं पाइये रोशनी ने तो साया बनाकर दिया आप अंधेरों से भी एक बनवाइये आपका जिस्म भी है मेरे जिस्म सा ज़ख़्म उतने ही दें जितने सह पाइये मिल के तन्हाई से जब हँसे ख़ामुशी हो सके तो ये रानाई दिखलाइये बन न पाए हमारा मुक़द्दर तो क्या आप तक़दीर ख़ुद की तो बन जाइये जानते हैं रवायत पतंगों की हम साथ उड़िये, गला अपना कटवाइये ख़ुद ब ख़ुद लोग नज़दीक आने लगें इस क़दर आप अपने को महकाइए

बागबां वो ही बनाये जा रहे हैं

बागबां  वो  ही  बनाये  जा  रहे  हैं गुल से जो ख़ुशबू चुराए जा रहे हैं अस्ल भी जिसका नहीं है क़र्ज़ हमपर सूद  हम  उसका  चुकाए जा रहे हैं अनकही बातें हुई  हैं बोझ लब पर होंठ हैं, बस  थरथराये  जा  रहे  हैं ज़िंदगी हमको सुहागन ही मिली है हम  इसे  बेवा  बनाये  जा  रहे  हैं ख़्वाब की ताबीर की उम्मीद देकर बस  हमें  सपने  दिखाए जा रहे हैं फिर पहाड़ों के वही बंजर से चेहरे ग़ुल के सेहरों में  छुपाये  जा रहे हैं मेंरी आँखों में तुम्हारे अश्क़ आकर हाले  दिल  पर मुस्कराए  जा रहे हैं याद हैं माज़ी के वो किस्से जो पैहम आँसुओं  को  भी  हँसाये  जा  रहे हैं #sheshdhar

नहीं मिलती है मंज़िल तो गिला क्या

नहीं मिलती है मंज़िल तो गिला क्या किसी की मिल्कियत  है  रास्ता क्या निकल आया है सूरज, खोल  आँखें तेरी   ख़ातिर   उगेगा   दूसरा   क्या चले   हो   फिर    मुक़द्दर   आज़माने तुम्हे  रास  आ  गया  है  टूटना क्या जो  मेरा  था  वो  अब  मेरा  नहीं  है पड़े  इस  फ़र्क़  से ही फ़र्क़ क्या क्या झुका  देते  हो  सर  हर  आस्ताँ  पर तुम्हें  लगता है हर पत्थर ख़ुदा क्या निखरती   जा   रही   है   बदनसीबी इसे   लगती   नहीं   है   बद्दुआ  क्या ज़माने  की   बहुत  है  फ़िक्र  तुझको तू  अपने  आप  से  उकता गया क्या जहाँ हँस कर मिले शेख़ और पंडित वही  अब  मयकदे  का  है पता क्या मेरी  नींद  उड़ के किस को ढूँढती है तेरे  ख़्वाबों  ने  दी कुछ इत्तिला क्या

भले है सिफ्र मगर बेअसर नही होता

भले  है  सिफ़्र  मगर  बेअसर  नही होता बग़ैर  सिफ़्र  के  तो इक अशर नही होता अशर 10 की संख्या सफ़र  सुकून  से  अपना  तमाम होता है हमारा जब भी कोई हमसफ़र नही होता जहाँ  न  शोर  न  तकरार बाल बच्चों की मकान कह लो उसे पर वो घर नही होता मु'आफ  मैं  नहीं करता रुलाने  वाले को मेरे ही शाने' पे जो उसका' सर नही होता पढूँ इक आँख से गीता तो दूजी से क़ुरआं हर  एक  शख़्स  में ऐसा हुनर नही होता मरुँ जो अम्नो अमां के लिए तो गम कैसा मरे   बग़ैर   तो   कोई   अमर  नहीं  होता वहाँ भी चाहो हमें आजमा के देखो तुम कि मो'तबर भी जहाँ मो'तबर नही होता ये आसमान है छत औ जमीं मेरा बिस्तर रहूँ कहीं भी, कभी  दर  बदर  नही होता तुम्हारा  मान  बढ़ाने  को  हैं  खड़े  वरना शदीद भीड़  का  हिस्सा ये सर नहीं होता गुजारी  हँस  के  जो खारों  में  ज़िंदगी मैंने गुलों के साथ अब अपना बसर नहीं होता 1212 1122 1212 22

अश्क उनके तो पोंछ आये हम

अश्क उनके तो पोंछ आये हम ख़ुद मगर मुस्करा न पाये हम छाँव औलाद के लिए बनकर धूप का लुत्फ़ ख़ूब उठाए हम घर मकां को बना नहीं पाते तोड़ते हैं बसे बसाये हम शह्र ने ख्वाब भी नहीं बख़्शे गाँव लौटे लुटे लुटाये हम हक़ हमें है गुनाह का आदम आख़िरश हैं तेरे ही जाये हम सर जब अपने पड़ी तो भूल गए फ़लसफ़े सब रटे रटाये हम. ख़्वाहिशों ने कही ग़ज़ल पूरी एक भी शेर कह न पाये हम शायरी का नशा चढ़ा जब से होश में फिर कभी न आये हम

ज़ाहिरन ख़ुश जो था कई दिन से

ज़ाहिरन ख़ुश जो था कई दिन से रो  रहा  था  सुना,  कई   दिन  से क्या हुए सब अमां के मुतमन्नी पुरसुकूं  है  फ़ज़ा  कई  दिन  से ख़ुशबुओं की तलाश में शायद है  परीशां  हवा  कई  दिन  से बात क्या है कि वो नहीं करता कोई शिकवा गिला कई दिन से ग़म  मुअद्दद* हैं और  तन्हाई कुछ नहीं है नया कई दिन से *counted गिनती के जाने  किसका  है  इंतज़ार  उसे दर है उसका खुला कई दिन से बात खुद से ही कर रहा है क्या कुछ नहीं बोलता कई दिन से वो जड़ों से उखड़ गया शायद जो शजर था झुका कई दिन से आख़िरश  बंद  हो  गयीं साँसे सज़्दए-शुक्र  था  कई  दिन  से ढूँढता फिर रहा है वो ख़ुद को नाम  लेकर  तेरा  कई दिन से मेरे  अंदर  कोई  तड़पता  है नेक  इंसान  सा  कई दिन से

दस्तयाबी को झुका जर्फ़े शजर तो देखिये

दस्तयाबी को झुका जर्फ़े शजर तो देखिये बर्ग के पर्दे में पोशीदा समर तो देखिये तितलियों के रंग से अत्फ़ाल खौफ़ आलूद हैं मज़हबी तालीम का उनपर असर तो देखिये मुतमइन है मंज़िले मक़्सूद मिल ही जायेगी उस मुसाफ़िर का ज़रा रख्ते सफ़र तो देखिये हर बशर होता नहीं है तंगदिल इस दह्र में सीप के अंदर निहाँ यकता गुहर तो देखिये रात को अखबार पर ही सो गए जो चैन से सुब्ह के अख़बार में उनकी ख़बर तो देखिये शाद है जो घर बनाकर दूसरों के वास्ते आप उस गुर्बतज़दा का भी बसर तो देखिये टूट कर भी सच का साथ उसने कभी छोड़ा नहीं आइने की सादगी को इक नज़र तो देखिये

बशर को ढाई आखर का अगर संज्ञान हो जाए

बशर को ढाई आखर का अगर संज्ञान हो जाए वही गुरुग्रंथ गीता बाइबिल क़ुर्आन हो जाए मजाज़ी औ हक़ीक़ी इश्क का मीज़ान हो जाए मेरा इजहार यारों मीर का दीवान हो जाए जलाकर ख़ाक कर मुझको मगर ये तो दुआ दे दे कि मेरा जिस्म सारा खुद ब खुद लोबान हो जाए ख़ुदा को भूलने वाले तबाही सोच क्या होगी अगर उसके लिए तू भी कभी अनजान हो जाए क़दम मुद्दत से तेरी ओर हैं मेरे, अगर तू भी- बढ़ा दे हाँथ तो मुश्किल ज़रा आसान हो जाए मज़ारें चादरों से ढक गयीं पर ख़ल्क़ नंगा है हमारे रहनुमाओं वाइजों को ज्ञान हो जाए सभी घर मंदिर-ओ-मस्जिद में खुद तब्दील हो जाएँ अगर इंसान को इंसानियत का भान हो जाए मिरे हाँथों से भी नेकी भरा कुछ काम करवा दे जहां से जाऊँ तो मेरा भी नाम उन्वान हो जाए परिंदे मगरिबी आबो हवा को "शेष" माइल हैं कहीं ऐसा न हो अपना चमन वीरान हो जाए

ऐसी तरकीब कोई दोस्त सुझाये मुझको

ऐसी तरकीब कोई दोस्त सुझाये मुझको नींद भर सो लूँ कोई ख़्वाब न आये मुझको मुश्किलें मुझ पे जब आयीं तो कई साथ आयीं मुझसे डरती हैं वो क्यूँ, कोई बताये मुझको ख़्वाब में सुल्ह का रस्ता तो निकल आएगा नींद तो आये, तेरा ख़्वाब तो आये मुझको डूब जाऊँ न सराबों में कहीं तश्नालब अब्र सा कोई शनावर ही बचाये मुझको ख़्वाब टूटे हैं जो, चुभते हैं मेरी आँखों में डर है बेदाद निगाही न सताये मुझको मेरी आँखों में उतर आये हैं जिसके आँसू चाहता हूँ कि वही आ के हँसाये मुझको क़ौल जब दे ही दिया है तो निभाऊँगा भी बारहा अब न कोई याद दिलाये मुझको

किनारा मौत ने जिस से किया हो

किनारा मौत ने जिस से किया हो उसे फिर जिंदगी से क्यूँ गिला हो करेंगे अब उन्ही पर हम भरोसा जिन्हें पहले नहीं देखा सुना हो कभी जब ज़िंदगी हम को मिलेगी तो पूछेंगे कि "हमसे क्यूँ खफा हो" न जाने नींद क्यूँ आती नहीं है मेरे ख़्वाबों को शायद कुछ पता हो धड़कता है बड़े आराम से दिल मेरी साँसे ये जैसे गिन रहा हो गुलाबी शम्स का चेहरा हुआ ज्यूँ उसे शब से इशारा मिल गया हो पढ़ा करता हूँ हाथों की लकीरें मुआफ़िक मेरे शायद कुछ लिखा हो

ये ज़मीं जब खून से तर हो गयी है

ये ज़मीं जब खून से तर हो गयी है ज़िंदगी कहते हैं बेहतर हो गयी है आप दरिया से समुन्दर हो गए और तिश्नगी मेरा मुक़द्दर हो गयी है अब सुख़नवर आग उगलेंगे क़लम से ख़ुदसरी शर की उजागर हो गयी है आपकी ज़ुल्फ़ें मेरे शाने पे बिखरीं धड़कनें दिल की बराबर हो गयी है बर्क़रफ़्तारी से हासिल कुछ न होगा ज़िंदगी भी आज चौसर हो गयी है ज़ेरे तनक़ीद आज मैं हूँ तो हुआ क्या शायरी पहले से बेहतर हो गयी है हाँथ पर क्या खोजना इक दो लकीरें जिस्म की रग रग सियहतर हो गयी है लोग अंतरजाल से जब से जुड़े हैं हालते अख्लाक़ बदतर हो गयी है ज़िंदगी का हाल जब पूछा किसी ने पुरनमी आँखों की उत्तर हो गयी है

नाम से तुमको पुकारा जायेगा

नाम से तुमको पुकारा जायेगा दर्द मेरा फिर उभारा जायेगा इक न इक मेरा सहारा जायेगा तुम मिलोगे, ग़म तुम्हारा जायेगा मंज़िले मक़सूद तक दरिया के साथ ज़ख्म खाकर भी किनारा जायेगा दफ़्न हो जाओगे ख़ुद में तुम भी जब क़ब्र में मुझको उतारा जाएगा ग़म का सरमाया इकठ्ठा कर लिया क़र्ज़ अब सबका उतारा जाएगा ज़हन पर तारी रहेगी जब अना दिल कभी तुमसे न हारा जायेगा दे रहा है दिल मगर टूटा हुआ कर के मुझको पारा पारा जायेगा

लोग कहते हैं कि तू कोई वली या पीर है

लोग कहते हैं कि तू कोई वली या पीर है सच तो ये है, ख़ुद की तू रूठी हुई तक़दीर है बाँटता है क्यों उसे भगवान और अल्लाह में सरफिरे इंसान क्या वो मूरिसी जागीर है जीस्त के कनवास पर जो खींच देता है धनक तू उसी अहले मुसव्विर की कोई तस्वीर है मुफ़लिसे बेदम को तुम झुक कर उठाओ तो कभी जान लोगे दर्दे-दिल की ये दवा अक्सीर है या ख़ुदा इस हाल में कैसे जिया जाए कि जब ज़िन्दगी पा-ए-वलद में फ़र्ज़ की जंज़ीर है जागते सोते जिसे ताज़िन्दगी देखा किये तू उसी एक ख्वाब-ए-मुबहम की सफ़ा ताबीर है हारता अपने ही बंदों से है तू ख़ुद बारहा फिर भी दुनिया क्यूँ कहे है तू ही आलमगीर है

थक गया था तू बहुत फिर भी न हारा शुक्रिया

थक गया था तू बहुत फिर भी न हारा शुक्रिया तेरी हिम्मत ने दिया मुझको सहारा शुक्रिया पास मेरे कुछ नहीं था जो कि दे पाता तुझे तेरी सुहबत में हुआ फिर भी गुजारा शुक्रिया ख़्वाहिशें पूरी हमारी हो सकें इसके लिए इक न इक तू तोड़ देता है सितारा शुक्रिया हो गया दीदार तेरा नब्ज़ फिर चलने लगी और तुझको कह रहा है जिस्म सारा शुक्रिया हौसला बाक़ी है आ फिर से हमें बर्बाद कर फ़ित्रतन तुझको कहेगा दिल हमारा शुक्रिया मैं सरापा तेरे अहसानों को हूँ ओढ़े हुए और रग रग में है इनका इस्तिआरा शुक्रिया तेरे कुछ अल्फ़ाज़ अब भी हैं हमारे ज़हन में आ रहे हैं वो समाअत में दुबारा शुक्रिया गुम हुए अहबाब मुझको छोड़कर मझधार में अज़्मे मौज़े वक़्त तुमने ही उबारा शुक्रिया

बहुत दम है तो ये करके दिखा दो

बहुत दम है तो ये करके दिखा दो किनारों  के  बिना  दरिया बहा दो भले  हँस लो  मेरी नाकामियों पर नहीं  डूबे  जो  वो  सूरज  उगा दो बिछी  है  चाँदनी  जो  छत  पे मेरे उसे  तुम  बाम  से  अपने  हटा दो नहीं  बर्दाश्त  है  सच  आइने  का तो  आईने  को  आईना  दिखा दो जमाने  की  बहुत  पर्वा  है तुमको जमाने को यक़ीं  इसका  दिला दो जो बच्चा रूठ कर  बैठा हो माँ से किसी तरकीब से उसको  हँसा दो गुमां  है  अपने  सरमाये  पे तुमको किसी  ख़ुद्दार  की  गर्दन  झुका दो चराग़ों   से   निभाते   हो  अदावत हवाओं  एक  जुगनू  को  बुझा  दो

हमारे दरमियां शायद बची कोई कहानी है

हमारे दरमियां शायद बची कोई कहानी है अभी पलकें न झपकाना, अभी आँखों में पानी है उबलती रेत से उम्मीद की इतनी कहानी है हमारे पाँव के छालों में भी थोड़ा सा पानी है हमारा दिल किसी के वास्ते धड़के, अजी छोड़ो उछलने कूदने की इसकी बीमारी पुरानी है सुना तो था सराबों से घिरा होता है हर सहरा मगर लगता है ये दुनिया तो नानी की भी नानी है अगर चलना है मेरे साथ तो पहला सबक़ ये है कि मेरा हर क़दम अज़्मत की मेरे तर्जुमानी है कभी हम चाँद को मुट्ठी में लेकर सो भी जाते थे मगर अब ज़हन में उस चाँद की झूठी कहानी है अज़ीज़ अपने पुराने घर का हर कोना लगे मुझको यहीं पैबस्त पुरखों की अभी तक हर निशानी है कभी जब इंतिहा हो जाये ग़म की और रोना हो किसी कोने में मुँह कर लो रवायत ये पुरानी है तुम्हारे दोस्तों के बीच कुछ अय्यार भी होंगे कहो उनसे ही हर वो बात जो दुश्मन को जानी है मेरे चेहरे की रौनक़ छीन कर अच्छा किया तुमने ज़रुरत ही कहाँ है, अब किसे सूरत दिखानी है

अगर मंज़ूर कर लो तुम हमारी हीर हो जाना

अगर मंज़ूर कर लो तुम हमारी हीर हो जाना करें  मंज़ूर  हम  दीवार  पर  तस्वीर हो जाना मेरी अकड़ी हुई गर्दन से शिकवा है अगर तुमको मुनासिब ही है शीरींकार का शमशीर हो जाना अगर हो मुत्मइन रुतबा है मेरा अह्ले आ'ज़म का मुझे तुम  क़त्ल करना और  आलमगीर हो जाना तुम्हारी क़ैद में रहना मुझे आराम ही देगा बशर्ते तुम करो मंज़ूर खुद ज़ंजीर हो जाना तेरे ख़्वाबों के दम पर ज़िंदगी मैं काट सकता हूँ कम अज़ कम वक़्ते आख़िर ख़्वाब की ताबीर हो जाना हमें ज़हनी तवाज़ुन ठीक रखकर मश्क़ करना है नहीं मुमकिन है रातों रात ग़ालिब मीर हो जाना किसी की ख़ामियाँ बनती नहीं हैं ख़ूबियाँ अपनी नहीं मुमकिन किसी नापारसा का पीर हो जाना

ज़िंदगी में यही इक कमी रह गयी

ज़िंदगी में यही इक कमी रह गयी दूर  मुझसे मेरी ज़िन्दगी रह गयी चाह थी, जीते जी मौत को देख लूँ आख़िरी एक ख़्वाहिश यही रह गयी कितने  झरनों  को  खुद  में  समेटे  नदी बस समुन्दर की बन कर रही, रह गयी उसकी ख़्वाहिश नहीं थी कि सागर बने झील   मीठी   थी  मीठी  बनी  रह  गयी ग़म छुपाने की कोशिश बहुत की मगर मेरी पलकों पे थोड़ी नमी रह गयी दर खुला था कि खुशियों की आमद रहे ग़म की खिड़की खुली थी, खुली रह गयी लाख चाहा कि कर दें ख़ुलासा मगर बात दिल की थी दिल में दबी रह गयी ख़ूबियों को नुमायां नहीं कर सका ये कमी मुझमे थी जो बची रह गयी तेरे ख़्वाबों ने तनहा न होने दिया ये हक़ीक़त मेरी अनकही रह गयी

बात होती है अयाँ आँख मिला कर देखो

बात होती है अयाँ आँख मिला कर देखो दर्द माँ बाप से तुम अपना छुपा कर देखो फड़फड़ाहट सी फ़िज़ाओं में बिखर जायेगी शाख पर लौटे परिंदों को उड़ा कर देखो गम सहोदर का किसी को भी रुला सकता है तुम कभी राम का किरदार निभा कर देखो गम ख़ुशी एक ही सिक्के के हैं दोनों पहलू एक गर पास हो दूजे को भुला कर देखो आँख में अश्क न हों और खुशी भी छलके हार जाओगे, कभी दाँव लगा कर देखो धूप में तनहा मुझे देख के ख़ुश क्यूँ हो तुम साथ साया है मेरा उसको मिटा कर देखो प्यार पर होता नहीं कोई असर नफ़रत का आब में लगती नहीं आग लगा कर देखो तुम भी परवाज़ की मुश्किल को समझ जाओगे हाँथ में टूटा हुआ पर तो उठा कर देखो है गुमां तुमको मिटा सकते हो हस्ती सबकी अपने हाथों की लकीरों को मिटा कर देखो

रखे जो याद उसको भूल जाना है बहुत मुश्किल

रखे जो याद उसको भूल जाना है बहुत मुश्किल लिए तूफ़ान दिल में, मुस्कराना है बहुत मुश्किल खुला करते हैं जिगरी दोस्तों में राज सब दिल के हर इक के सामने पल्लू गिराना है बहुत मुश्किल मिला करते हैं वो मुझसे ख़ुशी की ओढ़कर चादर ख़ुद अपने दिल से अपने ग़म छुपाना है बहुत मुश्किल हँसाये माँ तो हँस पड़ता है बच्चा रोते रोते भी भरी आँखों के आँसू भूल जाना है बहुत मुश्किल हमारी रूह दिखलाती हैं आईना हमें अक्सर ख़ुद अपने आप से नज़रें मिलाना है बहुत मुश्किल बिना संकोच के जो बात कड़वी भी कहें मुँह पर ज़हां में दोस्त ऐसे ढूँढ पाना है बहुत मुश्किल निकलते हैं तेरी आँखों के आँसू मेरी आँखों से यूँ ख़ामोशी से हाले दिल बताना है बहुत मुश्किल मज़ा आने लगा तो शायरी अब छोड़ दें कैसे नशेड़ी से नशे की लत छुड़ाना है बहुत मुश्किल मेरी ख़ुशियाँ मेरे आँसू भी मैंने रख दिये गिरवी यूँ अपना फ़र्ज़ हर सूरत निभाना है बहुत मुश्किल निकल आते हैं आँसू गर ज़रा सी चूक हो जाये किसी की आँख में काजल लगाना है बहुत मुश्किल कभी दरिया की गहराई किनारे से नहीं मिलती फ़साना ग़मज़दा का जान पाना है बहुत मुश्किल तिजारत हो नहीं सकती ग़मों, ख़ुशियों,

सब की किस्मत ख़राब है यारों

अपनी किस्मत ख़राब है यारों हर  कुएँ  में शराब  है  यारों मेरे   दुश्मन   मुरीद   हैं   मेरे ये  मुकम्मल  अजाब है यारों जिनको काली घटा सी कहते हो श्वेत लट पर खिजाब है यारों दोस्तों  की  जामा'अतों  से  ही दुश्मनों   पर   रुआब  है  यारों जब परिंदों में देखी यकजिहती ख़ुद  परीशां  उक़ाब  है  यारों एड़  दिल  को  कभी  नहीं देना रख़्श   ये   बेरकाब   है   यारों उसका  पहरा  है  नींद  पर मेरी जो कि ख़ुद मह्वे-ख़्वाब है यारों चाँद को "चाँद" कर दिया जिसने वो  ही  तो  आफ़ताब  है  यारों उसको दीवाने-मीर ही समझो जिसमे सूखा  गुलाब  है  यारों जिसका नश्शा है मेरी आँखों में ख़ुद  वो  जामे-शराब  है  यारों जब  ज़ुबां  साथ  दे  नहीं  पाती ख़ामुशी   ही   जवाब  है  यारों जो किसी दिल मे बस नहीं पाता वो   ही   ख़ानाख़राब   है   यारों

हदे सहरा सराबों से बनी है

हदे सहरा सराबों से बनी है तो फिर हर सू वहाँ क्यूँ तिश्नगी है ख़ुदाया और इक सूरज बना दे जहां में अब बला की तीरग़ी है किसी की जुस्तजू कब तक करें हम हमारी भी तो कोई ज़िंदगी है मुनासिब है सज़ाए मौत हमको गवाही ख़ुद हमारे सर ने दी है चले आओ, तुम्हारी राह में अब चिराग़ों के तले भी रौशनी है बिखर जायें न टूटे ख़्वाब मेरे ख़याल अपना रखो ये लाज़िमी है तअर्रुफ़ तक नहीं महदूद रहना बता देना कि वो मेरी खुशी है