ज़ाहिरन ख़ुश जो था कई दिन से
ज़ाहिरन ख़ुश जो था कई दिन से
रो रहा था सुना, कई दिन से
क्या हुए सब अमां के मुतमन्नी
पुरसुकूं है फ़ज़ा कई दिन से
ख़ुशबुओं की तलाश में शायद
है परीशां हवा कई दिन से
बात क्या है कि वो नहीं करता
कोई शिकवा गिला कई दिन से
ग़म मुअद्दद* हैं और तन्हाई
कुछ नहीं है नया कई दिन से
*counted गिनती के
जाने किसका है इंतज़ार उसे
दर है उसका खुला कई दिन से
बात खुद से ही कर रहा है क्या
कुछ नहीं बोलता कई दिन से
वो जड़ों से उखड़ गया शायद
जो शजर था झुका कई दिन से
आख़िरश बंद हो गयीं साँसे
सज़्दए-शुक्र था कई दिन से
ढूँढता फिर रहा है वो ख़ुद को
नाम लेकर तेरा कई दिन से
मेरे अंदर कोई तड़पता है
नेक इंसान सा कई दिन से
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