तू कभी मिल जाये तो इस बात का चर्चा करूँ

तू कभी मिल जाये तो इस बात का चर्चा करूँ
हो गिला तुझसे ही तो किससे ख़ुदा शिकवा करूँ

हर सुतूं मिस्मार है अब इस हिसारे जिस्म का
रूह जाने को ही राज़ी है नहीं तो क्या करूँ

धूप के मासूम टुकड़ों की है मुझसे आरज़ू
साथ उनके जब रहूँ तो उनपे मैं छाया करूँ

झुर्रियाँ हैं फ्रेम पर तस्वीर अब भी है जवान
क्यों हिसाबे वक़्त करके मैं तुझे बूढ़ा करूँ

रो पड़ूँगा यूँ  भी  तुझको आबदीदा  देखकर
इसलिए  सोचा  है  तेरे अश्क  मैं  रोया करूँ

नीमकश अबरू तुम्हारी जब करे हैं गुफ़्तगू
चाहता हूँ ज़द पे उनकी सिर्फ़ मैं आया करूँ

प्यार  की बस इब्तिदा  है  इंतिहा होती  नहीं
इसलिए  बेहतर  है तुझको दूर से देखा करूँ

कोई हद नाकामयाबी की बता मुझको ख़ुदा
आख़िरश कब तक मैं अपने आप को रुस्वा करूँ

मुस्कराना भी जो फ़ेहरिस्ते गुनह में है रक़म
तो मैं  एहसासे  समीमे  क़ल्ब  से तौबा करूँ

साहिबेइस्मत  परीपैकर  खड़ी  हो  सामने
तो शगुफ़्ता गुल लिए क्यों और का पीछा करूँ

मार दूँ अपनी अना को बेंच दूँ अपना ज़मीर
ज़िन्दगी तेरे लिए क्या क्या मैं समझौता करूँ

जब जहां की शै सभी फ़ानी हैं तो इनके लिए
क्या मुनासिब है कि अपनी रूह का सौदा करूँ

शेषधर तिवारी, इलाहाबाद

2122 2122 2122 212

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