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Showing posts from July, 2018

तू कभी मिल जाये तो इस बात का चर्चा करूँ

तू कभी मिल जाये तो इस बात का चर्चा करूँ हो गिला तुझसे ही तो किससे ख़ुदा शिकवा करूँ हर सुतूं मिस्मार है अब इस हिसारे जिस्म का रूह जाने को ही राज़ी है नहीं तो क्या करूँ धूप के मासूम टुकड़ों की है मुझसे आरज़ू साथ उनके जब रहूँ तो उनपे मैं छाया करूँ झुर्रियाँ हैं फ्रेम पर तस्वीर अब भी है जवान क्यों हिसाबे वक़्त करके मैं तुझे बूढ़ा करूँ रो पड़ूँगा यूँ  भी  तुझको आबदीदा  देखकर इसलिए  सोचा  है  तेरे अश्क  मैं  रोया करूँ नीमकश अबरू तुम्हारी जब करे हैं गुफ़्तगू चाहता हूँ ज़द पे उनकी सिर्फ़ मैं आया करूँ प्यार  की बस इब्तिदा  है  इंतिहा होती  नहीं इसलिए  बेहतर  है तुझको दूर से देखा करूँ कोई हद नाकामयाबी की बता मुझको ख़ुदा आख़िरश कब तक मैं अपने आप को रुस्वा करूँ मुस्कराना भी जो फ़ेहरिस्ते गुनह में है रक़म तो मैं  एहसासे  समीमे  क़ल्ब  से तौबा करूँ साहिबेइस्मत  परीपैकर  खड़ी  हो  सामने तो शगुफ़्ता गुल लिए क्यों और का पीछा करूँ मार दूँ अपनी अना को बेंच दूँ अपना ज़मीर ज़िन्दगी तेरे लिए क्या क्या मैं समझौता करूँ जब जहां की शै सभी फ़ानी हैं तो इनके लिए क्या मुनासिब है कि अपनी रूह का सौदा करूँ शेषधर

कोई शिकवा गिला है ही नहीं अब

कोई शिकवा गिला है ही नहीं अब अदावत  में  मज़ा  है  ही नहीं अब चलो  फिर  इब्तिदा  पर  लौटते  हैं उमीदे   इंतिहा   है   ही  नहीं  अब ख़ुशी की जुस्तजू की क्या ज़रूरत ग़मों  से  वास्ता  है   ही  नहीं  अब मज़ा लेना है अब  दौरे  ख़िजां का चमन में कुछ बचा है ही नहीं अब किया है क़त्ल कितनी बार ख़ुद को मेरे  हिस्से  क़ज़ा  है  ही  नहीं  अब मरेगा   भूख   से   प्यासा   समुन्दर नदी  में  वो  ग़िज़ा  है  ही नहीं अब शरीके जुर्म  हो तो   ख़ौफ़  किसका गुनाहों  की  सज़ा  है  ही  नहीं  अब राफ़ाक़त  में  कहाँ  है  वैसी  शिद्दत किसी  में  बचपना  है  ही  नहीं अब शेषधर तिवारी, इलाहाबाद 27 जून, 2018 1222 1222 122