ये ज़मीं जब खून से तर हो गयी है
ये ज़मीं जब खून से तर हो गयी है
ज़िंदगी कहते हैं बेहतर हो गयी है
आप दरिया से समुन्दर हो गए और
तिश्नगी मेरा मुक़द्दर हो गयी है
अब सुख़नवर आग उगलेंगे क़लम से
ख़ुदसरी शर की उजागर हो गयी है
आपकी ज़ुल्फ़ें मेरे शाने पे बिखरीं
धड़कनें दिल की बराबर हो गयी है
बर्क़रफ़्तारी से हासिल कुछ न होगा
ज़िंदगी भी आज चौसर हो गयी है
ज़ेरे तनक़ीद आज मैं हूँ तो हुआ क्या
शायरी पहले से बेहतर हो गयी है
हाँथ पर क्या खोजना इक दो लकीरें
जिस्म की रग रग सियहतर हो गयी है
लोग अंतरजाल से जब से जुड़े हैं
हालते अख्लाक़ बदतर हो गयी है
ज़िंदगी का हाल जब पूछा किसी ने
पुरनमी आँखों की उत्तर हो गयी है
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