मेरी तन्हाई पर कुछ तरस खाइये

मेरी तन्हाई पर कुछ तरस खाइये
अब ख़यालों से मेरे चले जाइये

रूह को दे के छाले अगर खुश हैं आप
पा सकें तो इसी में सुकूं पाइये

रोशनी ने तो साया बनाकर दिया
आप अंधेरों से भी एक बनवाइये

आपका जिस्म भी है मेरे जिस्म सा
ज़ख़्म उतने ही दें जितने सह पाइये

मिल के तन्हाई से जब हँसे ख़ामुशी
हो सके तो ये रानाई दिखलाइये

बन न पाए हमारा मुक़द्दर तो क्या
आप तक़दीर ख़ुद की तो बन जाइये

जानते हैं रवायत पतंगों की हम
साथ उड़िये, गला अपना कटवाइये

ख़ुद ब ख़ुद लोग नज़दीक आने लगें
इस क़दर आप अपने को महकाइए

Comments

Popular posts from this blog

शबे वस्ल ऐसे उसको खल रही थी

मेरा ख़ुशियों से साबका पूछा

तू कभी मिल जाये तो इस बात का चर्चा करूँ