बागबां वो ही बनाये जा रहे हैं
बागबां वो ही बनाये जा रहे हैं
गुल से जो ख़ुशबू चुराए जा रहे हैं
अस्ल भी जिसका नहीं है क़र्ज़ हमपर
सूद हम उसका चुकाए जा रहे हैं
अनकही बातें हुई हैं बोझ लब पर
होंठ हैं, बस थरथराये जा रहे हैं
ज़िंदगी हमको सुहागन ही मिली है
हम इसे बेवा बनाये जा रहे हैं
ख़्वाब की ताबीर की उम्मीद देकर
बस हमें सपने दिखाए जा रहे हैं
फिर पहाड़ों के वही बंजर से चेहरे
ग़ुल के सेहरों में छुपाये जा रहे हैं
मेंरी आँखों में तुम्हारे अश्क़ आकर
हाले दिल पर मुस्कराए जा रहे हैं
याद हैं माज़ी के वो किस्से जो पैहम
आँसुओं को भी हँसाये जा रहे हैं
#sheshdhar
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