जहाँ मुंसिफ़ अदल से सरगिरां है

जहाँ मुंसिफ़ अदल से सरगिरां है
वहाँ  इन्साफ़  का इमकां  कहाँ है

परिंदों  ने  क़फ़स  से  की  बग़ावत
अब उनकी ज़द में सारा आसमां है

शजर कब तक बचेंगे दश्त में जब
असर  उनपर  रुतों  का रायगाँ है

नहीं  शिकवा  करेगा  टूटकर  भी
मेरा  दिल  भी  मुझी  सा बेज़ुबां है

तवक्को  थी  हमें  तो  रहमतों की
तवज्जोह  आपकी  जाने  कहाँ है

हमेशा  साथ  क्यूँ  रहता  नहीं  ये
मेरा  साया  भी कितना बदगुमां है

किसे  कोसूँ  किसे  गुस्सा दिखाऊँ
नहीं  जब   और  कोई  हमइनाँ  है   

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