बशर को ढाई आखर का अगर संज्ञान हो जाए
बशर को ढाई आखर का अगर संज्ञान हो जाए
वही गुरुग्रंथ गीता बाइबिल क़ुर्आन हो जाए
मजाज़ी औ हक़ीक़ी इश्क का मीज़ान हो जाए
मेरा इजहार यारों मीर का दीवान हो जाए
जलाकर ख़ाक कर मुझको मगर ये तो दुआ दे दे
कि मेरा जिस्म सारा खुद ब खुद लोबान हो जाए
ख़ुदा को भूलने वाले तबाही सोच क्या होगी
अगर उसके लिए तू भी कभी अनजान हो जाए
क़दम मुद्दत से तेरी ओर हैं मेरे, अगर तू भी-
बढ़ा दे हाँथ तो मुश्किल ज़रा आसान हो जाए
मज़ारें चादरों से ढक गयीं पर ख़ल्क़ नंगा है
हमारे रहनुमाओं वाइजों को ज्ञान हो जाए
सभी घर मंदिर-ओ-मस्जिद में खुद तब्दील हो जाएँ
अगर इंसान को इंसानियत का भान हो जाए
मिरे हाँथों से भी नेकी भरा कुछ काम करवा दे
जहां से जाऊँ तो मेरा भी नाम उन्वान हो जाए
परिंदे मगरिबी आबो हवा को "शेष" माइल हैं
कहीं ऐसा न हो अपना चमन वीरान हो जाए
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