मुहब्बत में ही तेरी दम नहीं है

मुहब्बत  में  ही तेरी दम नहीं है
मेरी नीयत में कोई ख़म नहीं है

मेरी ख़ुशियाँ  जो  मुझसे छीन  पाये
जहां   में   ऐसा  कोई  ग़म  नहीं   है

ख़ुशी से है कि है नाराज़गी से
तू मेरे साथ है ये कम नहीं है

तरन्नुम है हमारी बेड़ियों में
किसी पायल की ये छम छम नहीं है

क़यामत-ख़ेज़  इसके  तजरबे  हैं
मगर दिल आज भी बरहम नहीं है

तेरी आँखें हैं अनपढ़ क्योंकि इनमें
मुहब्बत  पढ़  सकें  वो  दम नहीं है

बदल जाती है हर शै वक़्त के साथ
सचाई   है ये,  कोई भ्रम नहीं  है

अगर मैं ताश भी खेलूँ तो मेरे
मुक़द्दर  में  कोई  बेग़म नहीं है


Comments

Popular posts from this blog

शबे वस्ल ऐसे उसको खल रही थी

मेरा ख़ुशियों से साबका पूछा

तू कभी मिल जाये तो इस बात का चर्चा करूँ