दस्तयाबी को झुका जर्फ़े शजर तो देखिये
दस्तयाबी को झुका जर्फ़े शजर तो देखिये
बर्ग के पर्दे में पोशीदा समर तो देखिये
तितलियों के रंग से अत्फ़ाल खौफ़ आलूद हैं
मज़हबी तालीम का उनपर असर तो देखिये
मुतमइन है मंज़िले मक़्सूद मिल ही जायेगी
उस मुसाफ़िर का ज़रा रख्ते सफ़र तो देखिये
हर बशर होता नहीं है तंगदिल इस दह्र में
सीप के अंदर निहाँ यकता गुहर तो देखिये
रात को अखबार पर ही सो गए जो चैन से
सुब्ह के अख़बार में उनकी ख़बर तो देखिये
शाद है जो घर बनाकर दूसरों के वास्ते
आप उस गुर्बतज़दा का भी बसर तो देखिये
टूट कर भी सच का साथ उसने कभी छोड़ा नहीं
आइने की सादगी को इक नज़र तो देखिये
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