मेरा मंसब जनाब से कम है
मेरा मंसब जनाब से कम है
रो'ब भी इस हिसाब से कम है
मौत के बाद की ख़ुदा जाने
ज़िन्दगी किस अज़ाब से कम है
अश्क पी कर भी है ख़ुमारी सी
क्या जो नश्शा शराब से कम है
देखता है मगर हक़ारत से
बेरूख़ी किस जवाब से कम है
ख़्वाब में पेट भर के खा लेना
क्या किसी इंक़लाब से कम है
ग़मगुसारी में छोड़ दीं खुशियाँ
ये भी क्या इज़्तिराब से कम है
जान ले ले जो अश्क़े तनहाई
क्या किसी ज़ह्रे आब से कम है
हर वरक़ पर लिखे हैं अफ़साने
ज़िंदगी किस किताब से कम है।
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