ज़िंदगी में यही इक कमी रह गयी
ज़िंदगी में यही इक कमी रह गयी
दूर मुझसे मेरी ज़िन्दगी रह गयी
चाह थी, जीते जी मौत को देख लूँ
आख़िरी एक ख़्वाहिश यही रह गयी
कितने झरनों को खुद में समेटे नदी
बस समुन्दर की बन कर रही, रह गयी
उसकी ख़्वाहिश नहीं थी कि सागर बने
झील मीठी थी मीठी बनी रह गयी
ग़म छुपाने की कोशिश बहुत की मगर
मेरी पलकों पे थोड़ी नमी रह गयी
दर खुला था कि खुशियों की आमद रहे
ग़म की खिड़की खुली थी, खुली रह गयी
लाख चाहा कि कर दें ख़ुलासा मगर
बात दिल की थी दिल में दबी रह गयी
ख़ूबियों को नुमायां नहीं कर सका
ये कमी मुझमे थी जो बची रह गयी
तेरे ख़्वाबों ने तनहा न होने दिया
ये हक़ीक़त मेरी अनकही रह गयी
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