लोग कहते हैं कि तू कोई वली या पीर है

लोग कहते हैं कि तू कोई वली या पीर है
सच तो ये है, ख़ुद की तू रूठी हुई तक़दीर है

बाँटता है क्यों उसे भगवान और अल्लाह में
सरफिरे इंसान क्या वो मूरिसी जागीर है

जीस्त के कनवास पर जो खींच देता है धनक
तू उसी अहले मुसव्विर की कोई तस्वीर है

मुफ़लिसे बेदम को तुम झुक कर उठाओ तो कभी
जान लोगे दर्दे-दिल की ये दवा अक्सीर है

या ख़ुदा इस हाल में कैसे जिया जाए कि जब
ज़िन्दगी पा-ए-वलद में फ़र्ज़ की जंज़ीर है

जागते सोते जिसे ताज़िन्दगी देखा किये
तू उसी एक ख्वाब-ए-मुबहम की सफ़ा ताबीर है

हारता अपने ही बंदों से है तू ख़ुद बारहा
फिर भी दुनिया क्यूँ कहे है तू ही आलमगीर है

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