हदे सहरा सराबों से बनी है
हदे सहरा सराबों से बनी है
तो फिर हर सू वहाँ क्यूँ तिश्नगी है
ख़ुदाया और इक सूरज बना दे
जहां में अब बला की तीरग़ी है
किसी की जुस्तजू कब तक करें हम
हमारी भी तो कोई ज़िंदगी है
मुनासिब है सज़ाए मौत हमको
गवाही ख़ुद हमारे सर ने दी है
चले आओ, तुम्हारी राह में अब
चिराग़ों के तले भी रौशनी है
बिखर जायें न टूटे ख़्वाब मेरे
ख़याल अपना रखो ये लाज़िमी है
तअर्रुफ़ तक नहीं महदूद रहना
बता देना कि वो मेरी खुशी है
Comments
Post a Comment