जिन्हें पता है मनाज़िल को रास्ता करना
जिन्हें पता है मनाज़िल को रास्ता करना
कहाँ गये वो मुसाफ़िर ज़रा पता करना
चिराग़ रोज तो जलते नहीं हैं खुशियों के
मुनासिब आज नहीं आँधियों हवा करना
हमें तुम्हारी अगर दीद रोज हो जाती
तो हम बताते अमावस को ईद सा करना
हमें मिला ही नहीं आज तक मसीहा वो
सिखा दे जिस्म को जो रूह से वफ़ा करना
हर एक बात पे तेवर दिखाने वाले सुन
तेरे ही हक़ में नहीं यूँ मुज़ाहरा करना
अभी है गर्म न छूना तू राख को मेरी
इसे है याद तेरे लम्स से वफ़ा करना
ख़राब हो गई नीयत हमारे दिल की जो
हमें बता रहा है साथ तेरे क्या करना
जो झूठ मूठ शिकायत भी अब नहीं करता
उसे सिखाओ मुहब्बत को मुद्दआ करना
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