अब सबा भी बादे सर सर बन गयी है

अब सबा भी बादे सर सर बन गयी है
मैं बिखर जाऊँ, सही मौसम यही है

जब सराबों से घिरा है सारा सहरा
फिर वहाँ क्यूँ तिश्नगी ही तिश्नगी है

अब हुई महसूस उन्हें मेरी ज़रूरत
बर्फ अना की धीरे धीरे गल रही है

जब भी टूटेगा ख़ला से इक सितारा
तो समझ लूँगा जगह मेरी बनी है

ऐ ख़ुदा तू और इक सूरज बना दे
अब ज़मीं पर इन्तहाई तीरगी है

ये जो मेरे दिल की है तलबे अज़ीयत
बस मुहब्बत  की  हक़ीक़ी  बानगी है

जिस्म को हर इक सज़ा मंज़ूर होगी
रूह ने जब ख़ुद गवाही हँस के दी है

खूब अँधेरों ने इन्हें लूटा है शब भर
जो सितारों की चमक जाती रही है

लाख तारों से करे आराइशें मह
आसमां को जुस्तजू तो शम्स की है

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