ज़िक्र मैं कैसे करूँ तेरी जफ़ा का
ज़िक्र मैं कैसे करूँ तेरी जफ़ा का
दे चुका हूँ जब तुझे दर्जा ख़ुदा का
ज़िन्दगी जीना बहुत मुश्किल नहीं है
क्यूँ करूँ मैं इंतज़ार अपनी क़ज़ा का
रब तुझे तो ढूँढ़ कर मैं थक गया हूँ
दे दिया है इश्तिहार इक ग़ुमशुदा का
हार अपनी मान लेता मैं लड़े बिन
जिक्र तूने बेसबब छेड़ा अना का
हँस न दरिया काट कर अपने किनारे
मान करना सीख तू इन की वफ़ा का
जीत तो हासिल करो बेजा अना पर
बेसबब लहरा रहे हो तुम पताका
लिख ही दूँगा मैं अगर कश्ती पे "पानी"
क्या बिगड़ जायेगा इससे नाख़ुदा का
सुर्ख़ आरिज़, बाल गीले, लब गुलाबी
ज़ह्न में चेहरा है उस नाआश्ना का
सिसकियाँ शहनाईयों की सुन रहा हूँ
इम्तिहां है वक़्ते रुख़्सत भी बला का
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