अगर आँसुओं का सहारा न होता
अगर आँसुओं का सहारा न होता
ग़मों का जहां में गुजारा न होता
अगर हुस्न से इश्क हारा न होता
तो यूँ हुस्न को इश्क़ प्यारा न होता
मेरा गर्दिशों में सितारा न होता
तो मैं टूट कर पारा पारा न होता
अगर ज़ुर्म को ज़ुर्म तू मानता तो
वही ज़ुर्म तुझसे दुबारा न होता
गले मिल के नदियाँ बहातीं न आँसू
तो सागर कभी इतना खारा न होता
तेरी दीद हमको गुनहगार करती
अगर हमने सोचा विचारा न होता
अगर भूलता अपनी औकात दरिया
तो साथ उसके कोई किनारा न होता
मैं ख़ुद ही तेरे पास आता पलटकर
अगर तूने मुझको पुकारा न होता
फ़ने शायरी जो न आता अमल में
तसव्वुर का फिर इस्तिआरा न होता
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