मिलता है वो नसीब से हर सू तलाश कर

मिलता है वो नसीब से हर सू तलाश कर
है  तेरे  ही  करीब  ख़ुदा  तू  तलाश  कर

बूढ़े  शजर भी  हैं जहाँ  बा बर्गो बार अब
उस दश्त में  है कौन सा जादू तलाश कर

दामन  तो  तार  तार  हैं सब के ही इश्क में
अब तंज़ के कुछ और ही पहलू तलाश कर

मुर्दा  लबों  से  चीख सी उठने लगी है जब
क़ब्रों  से  उग  रहे  हों  वो बाजू तलाश कर

हो  रूह  की  रिज़ा  तो  मेरे  क़त्ल के लिए
हो  शर्म  से  न सुर्ख़ वो  चाक़ू  तलाश  कर

मुझसे   उमीद  कर  न   उसे   बेवफ़ा  कहूँ
दिन  को  कहे जो रात वो बुद्धू तलाश कर

जो  बह  गए  वो  अश्क  मेरे  धूल  में  मिले
आँखों  में ज़ज्ब  हैं जो वो आँसू तलाश कर

आदम  की  ज़ात  से हूँ  मुझे आदमी ही कह
मुस्लिम  न  मुझमे  ढूँढ़  न हिन्दू  तलाश कर

रहने  लगे  उदास   सितारे   फलक   पे  अब
बेहतर  है  तू  ज़मीन  पे  जुगनू  तलाश  कर

जिसके   लिए   तू   भाग   रहा  है  यहाँ वहाँ
कस्तूरी   है   तुझी   में  वो आहू! तलाश कर
आहू   मृग

शेषधर तिवारी, इलाहाबाद
9335303497

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