न जाने क्यूँ मेहरबां हुआ है

न जाने क्यूँ  मेहरबां  हुआ है
हमारे  दिल में  ख़ुदा  बसा है

कोई नफ़स पर सवार होकर
हमारे  भीतर   उतर  रहा  है

जिसे समझना है जो, समझ ले
हक़ीक़त  अपनी  हमें  पता है

हमारे  घर  की हर एक दीवार
से  ग़म  हमारा  टपक  रहा  है

कोई   मुसव्विर   मेरे  तसव्वुर
में  नक्शे  महशर बना चुका है     
प्रलय

हर  एक  को इत्तिला करूँ क्यूँ
मेरी अक़ीदत  में कौन क्या है

न  वालिदैन  अब  रखें  उमीदें
वो अपने पैरों  पे अब खड़ा है

न जाने कितनी तवील शब थी
जो  शम्स  ऐसे  थका  थका है

121 22  121 22

Comments

Popular posts from this blog

शबे वस्ल ऐसे उसको खल रही थी

मेरा ख़ुशियों से साबका पूछा

तू कभी मिल जाये तो इस बात का चर्चा करूँ