ख़ुद से बाहर आने की कोशिश में हूँ
ख़ुद से बाहर आने की कोशिश में हूँ
मैं अपने को पाने की कोशिश में हूँ
जीवन के बदरंग धनक पर फिर से मैं
सातों रंग चढ़ाने की कोशिश में हूँ
नासमझी में नासमझी हो जाती है
ख़ुद को ये समझाने की कोशिश में हूँ
रूह तुझे मैं क्यों जाने दूँ और कहीं
पैरहने नौ पाने की कोशिश में हूँ
फूलों और हवा में अहद करा कर ही
गुलशन को महकाने की कोशिश में हूँ
जो भी हो अपना किरदार निभाकर मैं
पर्दा आज गिराने की कोशिश में हूँ
मौत तुम्हारे आने तक जैसे तैसे
अपनी जान बचाने की कोशिश में हूँ
झूठी ही, अपनी बर्बादी की ख़बरें
उन तक पहुँचा पाने की कोशिश में हूँ
तेरा अक्स उभारें जो इन आँखों में
वो जज़्बात छुपाने की कोशिश में हूँ
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