हम तुम्हें छोड़ के जन्नत भी न जाने वाले
हम तुम्हें छोड़ के जन्नत भी न जाने वाले
आबला पा के लिए फूल बिछाने वाले
तेरी दुनिया मेरी दुनिया से अलग क्या होगी
रस्मे दुनिया को हैं हम दोनों निभाने वाले
जी उठूँ मैं न कहीं लम्स तुम्हारा पाकर
मेरी तस्वीर को सीने से लगाने वाले
जिस्म पर मेरे उभरते हैं तेरी याद के साथ
फिर वही ज़ख़्म वही दाग़ पुराने वाले
तू जो कह दे तो दुबारा वो ख़ता फिर कर दूँ
जिसके किस्से नहीं होते हैं सुनाने वाले
हमने देखे हैं कई लोग इसी दुनिया में
एक ही दिल को कई ठौर लगाने वाले
आख़िरी ज़िद है तुम्हारी तो चलो मान लिया
सर तुम्हारा नहीं शाने से हटाने वाले
शेषधर तिवारी
इलाहाबाद
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