ख़ुद पर अत्याचार करूँगा

ख़ुद पर अत्याचार करूँगा
तुझको फिर स्वीकार करूँगा

अपनी लाशा की कश्ती पर
ग़म का दरिया पार करूँगा

ताबीरों की ख़ातिर अपने
ख़्वाबों से भी रार करूँगा

आँसू  तो  मेरे  अपने  हैं
उनको ही ग़मख़्वार करूँगा

जीवन में खुशियाँ पाने को
ग़म को ही आधार करूँगा

हिम्मत है तो आये सूरज
उससे आँखें चार करूँगा

जुगनू हूँ पर वक़्ते ज़रूरत
अंधियारों पर वार करूँगा

पार निकल पाऊँ सहरा से
कोशिश बारम्बार करूँगा

लकड़ी की काठी पर घोड़ा
लेकर भी यलग़ार करूँगा

अपने सपनों की मंज़िल पर
इक दिन मैं अधिकार करूँगा

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